Sunday, June 15, 2014

पवित्र महीना और हमः इसमें कोई शक नहीं कि शाबान बहुत अहम महीना है। इस महीने की पन्द्रहवीं रात जिसे शबे  बरात कहा जाता है बड़ी फज़ीलत वाली है। हमें चाहिए तो ये था कि इस महीने में रोज़ा रखें और शबे बारात में इबादत की विशेष व्यवस्था करें। लेकिन हमारा तरीका इसक विपरीत नज़र आता है।। अक्सर देखा गया है कि शाबान का महीना आते ही आतिशबाजी छोड़ी जाती है, शबे बरात में बच्चे- जवान गोले पटाखे छोड़ते फिरते हैं, चारों ओर बेवजह का शोर और हंगामा बरपा करते घूमते हैं। कुछ लोग तो सिर्फ होटलों और चायखानों में ही बैठकर पूरी रात बिताते हैं। याद रहे शरीयत में इस तरह की वाहियात खुराफात की कोई जगह नहीं। हां अल्लाह के ज़िक्र की महफिलें सजाई जाएं, दरूद व  सलाम पढ़ा जाए, सज्दों से मस्जिदों को आबाद किया जाए, जिनकी फर्ज़ नमाज़ें पूरी हो चुकी हैं वो रात में नफिल की नमाज़ अदा करें। आपस में एक दूसरे से माफी मांगी जाए और प्यार के दरवाज़े हमेशा के लिए खोले जाएं, क़ज़ा नमाज़ों को अदा किया जाए और तौबा कर के आइंदा की नमाज़ों की पाबंदी की जाए, कब्रिस्तान जाकर माँ बाप, रिश्तेदारों  दोस्तों और मोमिनों के लिए माफी की दुआ की जाए कि अल्लाह के नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम खुद इस रात जन्नतुल बक़ी तशरीफ ले गये। जुआबाज़ी, शराब पीना, चोरी, सूदखोरी, दूसरों की बुराई और दूसरे सभी काम से पूरी ईमानदारी से पश्चाताप किया जाए कि खुदा की बारगाह में जब हमारे कार्यों को पेश किए जाएं तो हम हमेशा के लिए सच्चे प्रायश्चित करने वाले और नेक कामों को करने वाले हों। कुरान में हैः ऐ ईमान वालो! अल्लाह से सच्ची तौबा करो। अल्लाह हमें सच्ची तौबा करने और अच्छे काम करने की तौफ़ीक़ अता फरमाए। आमीन!



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