Sunday, February 23, 2014

Schism in the community उम्मत (सम्प्रदाय) में कलह






बदर काज़मी
1 जुलाई, 2013
पिछले साल अगस्त में इस लेखक का एक लेख ''फिरक़े नहीं मकातिबे फिक्र! एक फरेब मुसलसल'' के शीर्षक से अखबार में प्रकाशित हुआ था, जिसमें ये बताने और समझाने की कोशिश की गई थी कि क़ुरान ने फिरक़ाबंदी को शिर्क और कुफ्र बताया है। रसूललुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम से स्पष्ट शब्दों में कहा गया है कि, ''जो लोग धर्म में फिरक़े पैदा कर लें उनसे तेरा कोई वास्ता नहीं'। इसके अलावा ये कि क़ुरान में पहले की क़ौमों के ऐतिहासिक वर्णन में धार्मिक एकाधिकार के जुनून की पृष्ठभूमि को पेश करते हुए बताया गया कि, ''लोगों में धार्मिक मतभेद का कारण कुतुब समाविया के मनचाहे अर्थ और तफ़सीर (व्याख्या) में अंतर और उनके पाठ में विकृति के कारण से हुई।
''पहले तो सब लोग एक ही उम्मत थे, लेकिन वो आपस में मतभेद करने लगे तो अल्लाह ने उनकी तरफ संदेश पहुँचाने वाले और डर सुनाने वाले पैग़म्बर भेजे और उन पर सच्चाई पर आधारित किताबें उतारीं ताकि जिन मामलों में लोग मतभेद रखते थे, उन में उनका फैसला कर दे।'' (अलबक़रा: 213) और उसी के साथ ये चेतावनी भी सुनाई गई कि ''उनके इस ज़ुल्म के सबब उनके हक़ में वाज़ेह (स्पष्ट) और अज़ाब पूरा होकर रहेगा, और वो बोल भी न सकेंगे'' (अलनमलः 85) और ये धर्म में फिरक़ाबंदी करने वाले गूंगें, बहरे और अंधों की तरह हैं और ये कि फिरक़ाबंदी अल्लाह का अज़ाब है।
 

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