Saturday, February 15, 2014

Lavish Spending and Dowry: The Cause of Social Ills फिज़ूल ख़र्ची और दहेजः सामाजिक बुराइयों के कारण

सायरा इफ्तिखार
25 जून, 2013
दहेज अरबी भाषा के शब्द 'जहाज़' से लिया गया है जिसका अर्थ उस साज़ो सामान के हैं जिसकी किसी भी मुसाफिर को सफ़र के दौरान ज़रूरत होती है या दुल्हन को घर बसाने के लिए ज़रूरत होती है या इसका मतलब ऐसा सामान है जो मैय्यत को कब्र तक पहुंचाने के लिए इस्तेमाल होता है।
दहेज की रस्म हिन्दू प्रथा है। इस्लाम में निकाह के वक्त खजूर या शिरनी (मिठाई) बांटना और निकाह के बाद हैसियत के मुताबिक दावते वलीमा इस्लामी रिवाज है। जहाँ तक दहेज का सम्बंध है इस्लाम में इसकी कोई कल्पना नहीं मिलती। गैर-मुस्लिम समाजों में शादी के वक्त लड़की को दहेज दिया जाता है, इसलिए मुसलमानों ने भी हिन्दुओं की इस बुरी रस्म को अपना लिया है और अब हम भी इस बुरी रस्म की सज़ा भुगत रहें हैं। अगर क़ुरान को पढ़ें तो दहेज की कोई कल्पना नहीं मिलती। इसी तरह हदीस में भी दहेज की कोई कल्पना नहीं है। सिहाहे सित्ता, दूसरी विचारधाराओं और फ़िक़्हा (धर्मशास्त्र) की किताबों में हमें दहेज की कोई कल्पना नहीं मिलती है।
इस्लाम के पारिवारिक कानून में इन विषयों पर विस्तार से वर्णन किया गया है।(1) शादी (2) तलाक़ (3) नान नुफ्क़ा (भरण पोषण का खर्च) (4) संपत्ति में हिस्सा (5) महेर और औरत के दूसरे इस्लामी अधिकार के पारिवारिक कानून में दहेज का कोई उल्लेख नहीं है।
''तुम अपनी ताक़त के मुताबिक़ जहां तुम रहते हो वहाँ उन (तलाक़ वाली) औरतों को रखो और उन्हें तंग करने के लिए तकलीफ़ न पहुँचाओ और अगर वो हमल (गर्भावस्था) से हों लेकिन ज


 

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